Indian Poetry Books

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Neeli ChidiyaNeeli Chidiya
Neeli Chidiya
SPECIFICATION:
  • Publisher : Rajpal and Sons
  • By:  Harivansh Rai Bachchan
  • Binding : Paperback
  • Language :   Hindi
  • Edition : 2018
  • Pages: 16 pages
  • Size : 20 x 14 x 4 cm
  • ISBN-10: 9350641364
  • ISBN-13 : 9789350641361

DESCRIPTION:

हरिवंशराय बच्चन अपनी प्रसिद्ध कविता ‘मधुशाला’ के लिए तो जाने ही जाते हैं लेकिन उन्होंने बच्चों के लिए भी कविताएँ लिखीं, यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं। इस पुस्तक में उनकी वे बाल-कविताएँ हैं, जो उन्होंने अपनी पौत्री नीलिमा के पाँचवें जन्मदिन पर लिखी थीं।

                          $10
                          Milan Yamini
                          Milan Yamini
                          SPECIFICATION:
                          • Publisher : Rajpal and Sons
                          • By:  Harivansh Rai Bachchan
                          • Binding : Hardcover
                          • Language :   Hindi
                          • Edition : 2009
                          • Pages: 144 pages
                          • Size : 20 x 14 x 4 cm
                          • ISBN-10: 8170287863
                          • ISBN-13 : 9788170287865

                          DESCRIPTION:

                          ‘‘ ‘मिलन यामिनी’ में 99 कविताएँ हैं। इन्हें मैंने 33-33 के तीन भागों में विभक्त कर दिया है। पहले और तीसरे भाग में मैंने एक खास तरह के साँचे में ढली कविताएँ रखी हैं। दूसरे भाग में कोई ऐसा प्रतिबंध स्वीकार नहीं किया गया। धर्मशाला के इस मनोरम स्थान में, जहाँ एक ओर तो हिमाच्छादित धवलीधार पर्वतमाला खड़ी है और दूसरी ओर अनेक पहाड़ों, नालों और झरनों से निनादित और अभिसिंचित काँगड़ा की उर्वरा घाटी फैली है जिसकी दक्षिणी सीमा पर व्यास नदी दूर दूध की रेखा के समान दिखाई देती है, मैं अपनी वाणी पर नियंत्रण न रख सका। यही ‘मिलन यामिनी’ पूर्ण हुई है और यहीं मैंने उसके गीतों का क्रम आदि स्थापित किया एवं प्रेस कापी भी तैयार की।’’

                                                  $18
                                                  Milan Yamini
                                                  Milan Yamini
                                                  SPECIFICATION:
                                                  • Publisher : Rajpal and Sons
                                                  • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                  • Binding : Paperback
                                                  • Language :   Hindi
                                                  • Edition : 2016
                                                  • Pages: 144 pages
                                                  • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                  • ISBN-10: 8170288096
                                                  • ISBN-13 : 9788170288091

                                                  DESCRIPTION:

                                                  ‘‘ ‘मिलन यामिनी’ में 99 कविताएँ हैं। इन्हें मैंने 33-33 के तीन भागों में विभक्त कर दिया है। पहले और तीसरे भाग में मैंने एक खास तरह के साँचे में ढली कविताएँ रखी हैं। दूसरे भाग में कोई ऐसा प्रतिबंध स्वीकार नहीं किया गया। धर्मशाला के इस मनोरम स्थान में, जहाँ एक ओर तो हिमाच्छादित धवलीधार पर्वतमाला खड़ी है और दूसरी ओर अनेक पहाड़ों, नालों और झरनों से निनादित और अभिसिंचित काँगड़ा की उर्वरा घाटी फैली है जिसकी दक्षिणी सीमा पर व्यास नदी दूर दूध की रेखा के समान दिखाई देती है, मैं अपनी वाणी पर नियंत्रण न रख सका। यही ‘मिलन यामिनी’ पूर्ण हुई है और यहीं मैंने उसके गीतों का क्रम आदि स्थापित किया एवं प्रेस कापी भी तैयार की।’’

                                                                          $18
                                                                          Meri Shreshtha Kavitayen
                                                                          Meri Shreshtha Kavitayen
                                                                          SPECIFICATION:
                                                                          • Publisher : Rajpal and Sons
                                                                          • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                          • Binding : Hardcover
                                                                          • Language :   Hindi
                                                                          • Edition : 2017
                                                                          • Pages: 464 pages
                                                                          • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                          • ISBN-10: 8170283140
                                                                          • ISBN-13 : 9788170283140

                                                                          DESCRIPTION:

                                                                          कालजयी रचना ‘मधुशाला’ के रचयिता हरिवंशराय बच्चन हिन्दी के सबसे लोकप्रिय कवि हैं जिनकी गिनती बीसवीं सदी के अग्रगण्य कवियों में सबसे ऊपर है। इस संकलन को स्वयं बच्चन जी ने तैयार किया था। इसमें उन्होंने अपनी सभी काव्य रचनाओं में जो उनकी नज़र में श्रेष्ठ थीं-उन्हें इसमें सम्मिलित किया। अलग-अलग समय, परिस्थिति और जीवन के पड़ाव के विभिन्न रंगों को दर्शाती ये कविताएं कवि की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा से परिचित कराती हैं।

                                                                                                  $18
                                                                                                  Madhushala
                                                                                                  Madhushala
                                                                                                  SPECIFICATION:
                                                                                                  • Publisher : Rajpal and Sons
                                                                                                  • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                  • Binding : Hardcover
                                                                                                  • Language :   Hindi
                                                                                                  • Edition : 2017
                                                                                                  • Pages: 80 pages
                                                                                                  • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                  • ISBN-10: 8170283442
                                                                                                  • ISBN-13 : 9788170283447

                                                                                                  DESCRIPTION:

                                                                                                   

                                                                                                    हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना 'मधुशाला' 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है। मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

                                                                                                                            $12
                                                                                                                            MadhukalashMadhukalash
                                                                                                                            Madhukalash
                                                                                                                            SPECIFICATION:
                                                                                                                            • Publisher : Rajpal and Sons
                                                                                                                            • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                            • Binding : Hardcover
                                                                                                                            • Language :   Hindi
                                                                                                                            • Edition : 2017
                                                                                                                            • Pages: 128 pages
                                                                                                                            • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                            • ISBN-10: 818170284260
                                                                                                                            • ISBN-13 : 9788170284260

                                                                                                                            DESCRIPTION:

                                                                                                                            'मधुशाला', 'मधुबाला', 'मधुकलश' अग्रणी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ के तीन कविता-संकलन हैं जो हिन्दी साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं और कालजयी श्रृंखलाओं की कड़ी में आ खड़े हुए हैं। इन कविताओं की रचना के समय बच्चन जी की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। 'मधुकलश' की भूमिका में बच्चन जी ने लिखा है, ‘‘ये कविताएं सन् 1935-36 में लिखी गईं और सर्वप्रथम 1937 में प्रकाशित हुईं। इसके पहले मधुशाला 1935 में और 'मधुबाला' 1936 में प्रकाशित हो चुकी थीं। मेरे जीवन का जो उत्साह, उल्लास और उन्माद-गो उनमें एक अभाव, एक असन्तोष, एक निराशा की व्यथा भी घुली-मिली थी-'मधुशाला' और 'मधुबाला' में व्यक्त हुआ था, वह अब उतार पर था।’’ आगे लिखते हैं, ‘‘ये कविताएं जीवन के रस से खाली नहीं हैं और जीवन का रस मधु ही मधु नहीं होता, कटु भी होता है...समर्थ के हाथों अमृत भी बनता है।’’

                                                                                                                                                        $15
                                                                                                                                                        MadhubalaMadhubala
                                                                                                                                                        Madhubala
                                                                                                                                                        SPECIFICATION:
                                                                                                                                                        • Publisher : Rajpal and Sons
                                                                                                                                                        • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                        • Binding : Hardcover
                                                                                                                                                        • Language :   Hindi
                                                                                                                                                        • Edition : 2018
                                                                                                                                                        • Pages: 96 pages
                                                                                                                                                        • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                        • ISBN-10: 8170283566
                                                                                                                                                        • ISBN-13 : 9788170283560

                                                                                                                                                        DESCRIPTION:

                                                                                                                                                        अग्रणी कवि बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य 'मधु' अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और 'मधुशाला' एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम 'मधुशाला' ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई और कालजयी रचनाओं कर श्रेणी में आ खड़ी हुई है। इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है: 'आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं..., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा।''

                                                                                                                                                                                    $17
                                                                                                                                                                                    Kya Bhooloon Kya Yaad KaroonKya Bhooloon Kya Yaad Karoon
                                                                                                                                                                                    Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon
                                                                                                                                                                                    SPECIFICATION:
                                                                                                                                                                                    • Publisher : Rajpal and Sons
                                                                                                                                                                                    • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                    • Binding : Hardcover
                                                                                                                                                                                    • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                    • Edition : 2016
                                                                                                                                                                                    • Pages: 256 pages
                                                                                                                                                                                    • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                                                    • ISBN-10: 8170281342
                                                                                                                                                                                    • ISBN-13 : 9788170281344

                                                                                                                                                                                    DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                    प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।

                                                                                                                                                                                                                $23
                                                                                                                                                                                                                Khaiyam Ki MadhushalaKhaiyam Ki Madhushala
                                                                                                                                                                                                                Khaiyam Ki Madhushala
                                                                                                                                                                                                                SPECIFICATION:
                                                                                                                                                                                                                • Publisher : Rajpal and Sons
                                                                                                                                                                                                                • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                • Binding : Hardcover
                                                                                                                                                                                                                • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                • Edition : 2014
                                                                                                                                                                                                                • Pages: 128 pages
                                                                                                                                                                                                                • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                                                                                • ISBN-10: 8170284252
                                                                                                                                                                                                                • ISBN-13 : 9788170284253

                                                                                                                                                                                                                DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                बारहवीं शताब्दी के फ़ारसी शायर उमर खै़याम की रुबाइयों का, जिनमें मनुष्य जीवन की भंगुरता तथा अर्थहीनता को बड़े प्रभावी शब्दों में व्यक्त किया गया है, विश्व साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सात सौ वर्ष बाद उन्नीसवीं शताब्दी में एडवर्ड फिट्ज़जेरल्ड ने इसकी चुनी हुई रुबाइयों का अंग्रेज़ी अनुवाद किया तो दुनिया भर में उसकी धूम मच गई क्योंकि इस समय तक देशों में आवागमन बहुत बढ़ चुका था और अंग्रेज़ी पारस्परिक आदान-प्रदान का माध्यम बन चुकी थी। बीसवीं शताब्दी में यह तूफ़ान भारत में भी आ पहुँचा और 30 के दशक में एक दर्जन से ज़्यादा इसके अनुवाद-अनुवादकों में मैथिलीशरण गुप्त तथा सुमित्रानंदन पंत जैसे कवि भी थे-हिन्दी में प्रकाशित हुए। यह दरअसल एक नई चेतना, एक दर्शन था जिससे सभी प्रबुद्ध जन प्रभावित हो रहे थे।

                                                                                                                                                                                                                                            $12
                                                                                                                                                                                                                                            Janamdin Ki BhentJanamdin Ki Bhent
                                                                                                                                                                                                                                            Janamdin Ki Bhent
                                                                                                                                                                                                                                            SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                            • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                            • Binding : Paperback
                                                                                                                                                                                                                                            • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                                            • Edition : 2017
                                                                                                                                                                                                                                            • Pages: 16 pages
                                                                                                                                                                                                                                            • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                                                                                                            • ISBN-10: 9350641372
                                                                                                                                                                                                                                            • ISBN-13 : 9789350641378

                                                                                                                                                                                                                                            DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                            प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन की बेटी के पाँचवें जन्मदिन के अवसर पर उनके दादा हरिवंशराय बच्चन ने कुछ कविताएँ लिखकर भेंट की थीं, जो सभी इसी पुस्तक में हैं। बच्चन जी हिन्दी साहित्य के दिग्गज कवि हैं, जिनकी कविताएँ सभी आयु वर्ग के लोग पसंद करते हैं।

                                                                                                                                                                                                                                                                        $10
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                                                                                                                                                                                                                                                                        Jaal Sameta
                                                                                                                                                                                                                                                                        SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                                                        • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                                                        • Binding : Paperback
                                                                                                                                                                                                                                                                        • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                                                                        • Edition : 2016
                                                                                                                                                                                                                                                                        • Pages: 72 pages
                                                                                                                                                                                                                                                                        • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                                                                                                                                        • ISBN-10: 8170287987
                                                                                                                                                                                                                                                                        • ISBN-13 : 9788170287988

                                                                                                                                                                                                                                                                        DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                                                        बच्चन जैसे भाव-प्रवण कवि समय के साथ अपनी कविताओं को अनेक रंगों में चित्रित करते हैं। ‘जाल समेटा’ की कविताएं उन्होंने 1960-70 के दशक में लिखी थीं। लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच कर जीवन की वास्तविकता के संबंध में उनके मन में अनेक भाव उठे। ‘जाल समेटा’ में उनकी इन भावनाओं को सजीव करती उत्कृष्ट कविताओं को पढ़िए। बच्चनजी के शब्दों में, ‘‘मेरी कविता मोह से प्रारंभ हुई थी और मोह-भंग पर समाप्त हो गयी।’’

                                                                                                                                                                                                                                                                                                    $10
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    Jaal Sameta
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    Jaal Sameta
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • Binding : Hardcover
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • Edition : 2009
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • Pages: 72 pages
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • ISBN-10: 8170287820
                                                                                                                                                                                                                                                                                                    • ISBN-13 : 9788170287827

                                                                                                                                                                                                                                                                                                    DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                                                                                    बच्चन जैसे भाव-प्रवण कवि समय के साथ अपनी कविताओं को अनेक रंगों में चित्रित करते हैं। ‘जाल समेटा’ की कविताएं उन्होंने 1960-70 के दशक में लिखी थीं। लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच कर जीवन की वास्तविकता के संबंध में उनके मन में अनेक भाव उठे। ‘जाल समेटा’ में उनकी इन भावनाओं को सजीव करती उत्कृष्ट कविताओं को पढ़िए। बच्चनजी के शब्दों में, ‘‘मेरी कविता मोह से प्रारंभ हुई थी और मोह-भंग पर समाप्त हो गयी।’’

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                $10
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                Do Chattanein
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                Do Chattanein
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • Binding : Paperback
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • Edition : 2014
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • Pages: 176 pages
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • ISBN-10: 8170287995
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                • ISBN-13 : 9788170287995

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            $12
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            Do Chattanein
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            Do Chattanein
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • Binding : Hardcover
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • Edition : 2013
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • Pages: 176 pages
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • Size : 20 x 14 x 4 cm
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • ISBN-10: 8170287839
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            • ISBN-13 :9788170287834

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        $12
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        Basere Se Door
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        Basere Se Door
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        • Binding : Hardbound
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        • Language :   Hindi
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        • Size : 20 x 14 x 4 cm
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        • ISBN-13 :9788170282853

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $27
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Bandar Bant
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Bandar Bant
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      SPECIFICATION:
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • By:  Harivansh Rai Bachchan
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Binding : Paperback
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Language :   Hindi
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Edition : 2017
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • ISBN-10: 9350641356
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • ISBN-13 :9789350641354

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      DESCRIPTION:

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      लोकप्रिय हिन्दी फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन के पाँचवें जन्मदिन पर उनके दादा प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंशराय बच्चन ने ये कविताएँ और एक छोटा-सा नाटक लिखा था जो कि इस पुस्तक में सम्मिलित है। कवि के रूप में बच्चन जी की हिन्दी साहित्य जगत में अपनी एक पहचान है। उनकी कविताएँ, चाहे बड़ों के लिए हों या फिर बच्चों के लिए, मन को छू जाती हैं।

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $12
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Devotional Poems of Mirabai
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Devotional Poems of Mirabai

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      THE DEVOTIONAL POEMS OF MIRABAI offers the reader a sober English translation of two hundred of her Padas, based on the interpretative work of Indian scholars that has appeared during the last few decades. Three introductory essays deal with her life, her place in the Bhakti movement and the characteristics of her poetry. Terminal notes explain the mythological references to the non-Hindu reader, indicate some linguistic difficulties and record minor deviations from the fifteenth edition of Parashuram Chaturvedi`s MIRAMBAI KI PADAVALI, the basic text used.

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $15
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Save 10%
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      A History of Sanskrit Literature
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      A History of Sanskrit Literature
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Description:

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Sanskrit is indeed the language not only of kavya or literature but of all the Indian sciences, and excepting the Pali of the Hinayana Buddhists and the Prakrt of the jains, it is the only language in which the last 2 or 3 thousand years, and it has united the culture of Indian and given it a synchronous form in spite of general differences of popular speech, racial and geographical, economical and other differences, It is the one ground that has made it possible to develop the idea of Hindu nationhood in which kinship of culture plays the most important part. Under the shadow of one Vedic religion there had indeed developed many subsidiary religions, Saiva, Vaisnava, Sakta, etc., and within each of these, there had been many sects and subsects which have often emphasised the domestic quarrel, but in spite of it all there is a unity of religions among the Hindus, for the mother of all religious and secular culture had been Sanskrit.

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Maurice Winterintz' work in three volumes seems to be the most comprehensive treatment of Sanskrit Literature. Prof. S.N. Dasgupta was approached for English translation of its 3rd Volume, after Winternitz death. Later he was approached by Calcutta University to undertake his own work on the subjects that formed the content of Volume 3rd of Professor Winternitz' work. Volume I deals with Kavya and Alamkara and Volume II is expected to deal with other Technical Sciences.

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Specification:
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Product Code: BK8101-2
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Publisher : Motilal Banarsidass Publishers
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Edition : July 1, 2013
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Pages : 962
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Weight : 1.450 km.
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Size : 9.6 x 6.7 x 2.5 inches
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Cover : Hardcover 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Auther : Surendranath Dasgupta (Author), Sushil Kumar De (Author)
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • Language : English
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      • ISBN: 8120841107, 978-8120841109
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $58.50 $65
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The River Speaks
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The River Speaks
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      In the ancient Tamil country, the Vaiyai was much more than a mighty river rushing towards the sea. People knew the river intimately and lived their lives upon its banks. In these exquisite poems from the distant past (second to eighth century CE), we glimpse the ebb and flow of everyday life: the bathing, the water games, the lovers’ quarrels and the sacred rituals. Breathtaking in their descriptive power and graceful in their celebration of sensuality, the Vaiyai poems from the Paripāṭal anthology delight our senses and give us insight into a world long past. In V.N. Muthukumar and Elizabeth Segran’s radiant new translation, the Vaiyai River comes alive to a new generation of readers.
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $16
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Absent Traveller
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Absent Traveller
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Gathasaptasati is perhaps the oldest extant anthology of poetry from South Asia, containing our very earliest examples of secular verse. Reputed to have been compiled by the Satavahana king Hala in the second century CE, it is a celebrated collection of 700 verses in Maharashtri Prakrit, composed in the compact, distilled gatha form. The anthology has attracted several learned commentaries and now, through Arvind Krishna Mehrotra’s acclaimed translation of 207 verses from the anthology, readers of English at last have access to its poems. The speakers are mostly women and, whether young or old, married or single, they touch on the subject of sexuality with frankness, sensitivity and, every once in a while, humour, which never ceases to surprise. The Absent Traveler includes an elegant and stimulating translator’s note and an afterword by Martha Ann Selby that provides an admirable introduction to Prakrit literature in general and the Gathasaptasati in particular.
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $12
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Red Tin Roof
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The Red Tin Roof
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Set in Shimla, The Red Tin Roof evokes with rare delicacy and precision the interplay of seasons, nature and people, while it broodingly tells the story of a young girl growing into adolescence, in the company mostly of older women but also of a younger brother who trails her. In this exploration of an inner world, Nirmal Verma does not so much as tell a story as reminisce. Memory is the seed of his story.
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $18.49
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Selected Poems
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Selected Poems
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The poems of Rabindranath Tagore are among the most haunting and tender in Indian and world literature, expressing a profound and passionate human yearning. His ceaselessly inventive works deal with such subjects as the interplay between God and mortals, the eternal and the transient, and the paradox of an endlessly changing universe that is in tune with unchanging harmonies. Poems such as "Earth" and "In the Eyes of a Peacock" present a picture of natural processes unaffected by human concerns, while others, as in "Recovery14," convey the poet's bewilderment about his place in the world. And exuberant works such as "New Rain" and "Grandfather's Holiday" describe Tagore's sheer joy at the glories of nature or simply in watching a grandchild play.
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $19
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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Kumarasambhava of Kalidasa, CANTOS I-VIII
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      "The most important Kavyas of Kalidasa-Raghuvamsa and Kumarasambhava-are distinguished by their independence of treatment and excellence of poetical beauty. The Kumarasambhava of Kalidasa varies from the loveliness of spring and the delights of married love to the utter desolation induced by the death of beloved. The subject is unquestionably a daring one: the events which bring about the marriage of Lord Siva to Uma and the birth of Skanda.

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The prose order of each sloka has been given in the commentary by using bold type, the words not actually repeated by Mallinatha being enclosed within rectangular brackets. The notes explain allusions, grammatical peculiarities not noticed by Mallinatha, copious extracts from other commentaries being given for this purpose. The book includes text, the commentary of Mallinatha, a literal English translation, notes and introduction.

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The hero of this poem is a divine being, and one of the Dhirodatta class. The prevailing sentiments is Sringara, Karuna and Santa, though not very prominent, being accessories to it. The 3rd and the 5th Cantos are a good illustration of Vipralambha, the 4th that of Karuna, the 7th of Vivaha, and the 8th of Sambhoga. The subject of each following canto is hinted at the end of each precedding one.
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      "

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $25
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Kalhana's Rajatarangini, Vol.3
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Kalhana's Rajatarangini, Vol.3

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      "Kalhana’s Rajatarangini is the most famous historical poem which records the oldest and fullest history of the legendary kings of Kashmir as well as gives accounts of the Kashmirian kings of the historical period. It consists of eight chapters and draws upon earlier sources, notably the Nilamata Purana.


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Sir Stein recognising the inestimable value of the only work of its kind, succeeded in publishing the critical edition of the text as early as in 1892.


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      The interest of this treatise for Indian history generally lies in the fact that it represents a class of Sanskrit composition which comes nearest in character to the chronicles of Medieval Europe and of the Muhammadan East. Together with the later Kashmir chronicles which continue Kalhana’s narrative, it is practically the sole extant specimen of this class.


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Its author’s object is to offer a connected narrative of the various dynasties which ruled Kashmir from the earliest period down to his own time. The final portion of the work, considerable both in extent and historical interest, is devoted to the accounts of the events which the author knew by personal experience or from the relation of living witnesses. These events are narrated from the point of view of a more or less independent chronicler and by no means the purely panegyrical object of the court-poet. "

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      $45

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Recently viewed