SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Rajendra Mohan Bhatnagar
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 320 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641917
- ISBN-13 :9789350641910
DESCRIPTION:
रैदास या जिन्हें रविदास के नाम से भी जाना जाता है, पन्द्रहवीं सदी के संत थे जो उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी हैं। संत रैदास के पिता चमार थे जो उस समय के समाज में अछूत माने जाते थे। लेकिन रैदास का यह मानना था कि मनुष्य की पहचान उसकी जाति से नहीं, उसके कर्म से होती है और ईश्वर की भक्ति करना और धार्मिक ग्रन्थ पढ़ना हर मनुष्य का अधिकार है। समाज में छुआछूत के विरूद उन्होंने घोर विरोध किया और इस बात का प्रचार भी किया कि सच्ची मेहनत और कर्म से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। स्वयं ईश्वर-भक्ति में लीन रहने के साथ रैदास जूते बनाने का अपना काम लगातार करते रहे। धर्म और समाज के उद्धारक रैदास एक बुद्धिजीवी कवि और आध्यात्मिक संत भी थे। संत रैदास के कथन धीरे-धीरे रविदासीय के नाम से इकट्ठे होने लग गए और आज रविदासीय के नाम से अलग धर्म भी है। प्रतिष्ठित लेखक राजेन्द्र मोहन भटनागर के गहरे अध्ययन के बाद तैयार की हुई यह कृति संत रैदास के जीवन की जीती-जागती तस्वीर है। विवेकानन्द, युगपुरुष अम्बेडकर, सरदार, कुली बैरिस्टर, गौरांग उनके अन्य लोकप्रिय जीवनीपरक उपन्यास हैं। 2014 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ से राजेन्द्र मोहन भटनागर को नवाज़ा गया तथा 1994 में राजस्थान साहित्य अकादमी ने उन्हें ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ और सर्वोच्च पुरस्कार ‘मीरा पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Rajendra Mohan Bhatnagar
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 320 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641917
- ISBN-13 :9789350641910
DESCRIPTION:
रैदास या जिन्हें रविदास के नाम से भी जाना जाता है, पन्द्रहवीं सदी के संत थे जो उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी हैं। संत रैदास के पिता चमार थे जो उस समय के समाज में अछूत माने जाते थे। लेकिन रैदास का यह मानना था कि मनुष्य की पहचान उसकी जाति से नहीं, उसके कर्म से होती है और ईश्वर की भक्ति करना और धार्मिक ग्रन्थ पढ़ना हर मनुष्य का अधिकार है। समाज में छुआछूत के विरूद उन्होंने घोर विरोध किया और इस बात का प्रचार भी किया कि सच्ची मेहनत और कर्म से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। स्वयं ईश्वर-भक्ति में लीन रहने के साथ रैदास जूते बनाने का अपना काम लगातार करते रहे। धर्म और समाज के उद्धारक रैदास एक बुद्धिजीवी कवि और आध्यात्मिक संत भी थे। संत रैदास के कथन धीरे-धीरे रविदासीय के नाम से इकट्ठे होने लग गए और आज रविदासीय के नाम से अलग धर्म भी है। प्रतिष्ठित लेखक राजेन्द्र मोहन भटनागर के गहरे अध्ययन के बाद तैयार की हुई यह कृति संत रैदास के जीवन की जीती-जागती तस्वीर है। विवेकानन्द, युगपुरुष अम्बेडकर, सरदार, कुली बैरिस्टर, गौरांग उनके अन्य लोकप्रिय जीवनीपरक उपन्यास हैं। 2014 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ से राजेन्द्र मोहन भटनागर को नवाज़ा गया तथा 1994 में राजस्थान साहित्य अकादमी ने उन्हें ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ और सर्वोच्च पुरस्कार ‘मीरा पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
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