Hindi Sahitya : Samkaleen Pariprekshya

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SPECIFICATION:
  • Publisher : Rajpal and Sons
  • By:  Pramod Kovprat (Author)
  • Binding : Hardcover
  • Language : Hindi
  • Edition :2015
  • Pages: 144 pages
  • Size : 20 x 14 x 4 cm
  • ISBN-10: 9350642778
  • ISBN-13 :9789350642771

DESCRIPTION: 

समकालीन साहित्य के परिप्रेक्ष्य में अतीत है, वर्तमान है और भविष्य भी है। हिन्दी साहित्य विधा और विषय की व्यापकता की दृष्टि से काफी समृद्ध है। इस पुस्तक में भारत भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के विद्वान प्राध्यापकों के ज्वलंत विषयों पर आलेख सम्मिलित हैं। वैश्वीकरण, स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, पर्यावरण-विमर्श, सांप्रदायिकता और आतंकवाद पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई है। समकालीनता की बुनियादी अवधारणा की विस्तृत चर्चा के साथ कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना और आत्मकथा जैसे बहुआयामी विषयों पर चर्चा इसमें मिलती है। कुल मिलाकर यह पुस्तक समकालीन साहित्य की बहुआयामी प्रवृत्तियों को प्रतिबिंबित करती है। निश्चय ही यह हिन्दी साहित्य का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

                          Description

                          SPECIFICATION:
                          • Publisher : Rajpal and Sons
                          • By:  Pramod Kovprat (Author)
                          • Binding : Hardcover
                          • Language : Hindi
                          • Edition :2015
                          • Pages: 144 pages
                          • Size : 20 x 14 x 4 cm
                          • ISBN-10: 9350642778
                          • ISBN-13 :9789350642771

                          DESCRIPTION: 

                          समकालीन साहित्य के परिप्रेक्ष्य में अतीत है, वर्तमान है और भविष्य भी है। हिन्दी साहित्य विधा और विषय की व्यापकता की दृष्टि से काफी समृद्ध है। इस पुस्तक में भारत भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के विद्वान प्राध्यापकों के ज्वलंत विषयों पर आलेख सम्मिलित हैं। वैश्वीकरण, स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, पर्यावरण-विमर्श, सांप्रदायिकता और आतंकवाद पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई है। समकालीनता की बुनियादी अवधारणा की विस्तृत चर्चा के साथ कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना और आत्मकथा जैसे बहुआयामी विषयों पर चर्चा इसमें मिलती है। कुल मिलाकर यह पुस्तक समकालीन साहित्य की बहुआयामी प्रवृत्तियों को प्रतिबिंबित करती है। निश्चय ही यह हिन्दी साहित्य का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

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