SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Rangey Raghav (Author)
- Binding :Paperback
- Language: Hindi
- Edition :2016
- Pages: 136 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287154
- ISBN-13:9788170287155
DESCRIPTION:
हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिंतकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक श्रृंखला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। प्रस्तुत उपन्यास मध्यकालीन अग्रणी कवि गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर आधारित विशिष्ट उपन्यास है जिसमें उनकी पत्नी रत्नावली, जो लेखक के अनुसार स्वयं कवयित्री थीं, को केंद्र मानकर उनके जीवन में राम-भक्ति के उदय और विकास को प्रदर्शित किया गया है। तुलसीदास एक महान् भक्त कवि थे। उन्होंने हिंदू धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। मुगलों के धार्मिक अभियान को रोकने की दिशा में उनका यह विशिष्ट योगदान था। उन्होंने देश भर में रामलीला का भी आरंभ और प्रचलन किया जो आम जनता में हिंदू धर्म को बनाये रखने में सफल हुई। इस आंदोलन के ही परिणामस्वरूप हिन्दू समाज को उसकी व्यापक संस्कृति के आधार पर संगठित होने का आधार मिला। रांगेय राघव का यह उपन्यास आदि से अन्त तक पठनीय है।
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Rangey Raghav (Author)
- Binding :Paperback
- Language: Hindi
- Edition :2016
- Pages: 136 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287154
- ISBN-13:9788170287155
DESCRIPTION:
हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिंतकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक श्रृंखला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। प्रस्तुत उपन्यास मध्यकालीन अग्रणी कवि गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर आधारित विशिष्ट उपन्यास है जिसमें उनकी पत्नी रत्नावली, जो लेखक के अनुसार स्वयं कवयित्री थीं, को केंद्र मानकर उनके जीवन में राम-भक्ति के उदय और विकास को प्रदर्शित किया गया है। तुलसीदास एक महान् भक्त कवि थे। उन्होंने हिंदू धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। मुगलों के धार्मिक अभियान को रोकने की दिशा में उनका यह विशिष्ट योगदान था। उन्होंने देश भर में रामलीला का भी आरंभ और प्रचलन किया जो आम जनता में हिंदू धर्म को बनाये रखने में सफल हुई। इस आंदोलन के ही परिणामस्वरूप हिन्दू समाज को उसकी व्यापक संस्कृति के आधार पर संगठित होने का आधार मिला। रांगेय राघव का यह उपन्यास आदि से अन्त तक पठनीय है।
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