SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Dasharath Oza (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2018
- Pages: 420 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10:8170284023
- ISBN-13: 9788170284024
DESCRIPTION:
"इतना कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रथम बार इतनी विशाल पृष्ठ भूमि पर रखकर हिंदी के नाटक देखे और जाँचे गए हैं।मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक से हिन्दी नाटकों के अध्ययन को बहुत बल मिलेगा और यह हिंदी-संसार के विद्यार्थियों के द्वारा आदर-सम्मान प्राप्त करेंगी। हिंदी में लोक-नाट्य की परम्परा बहुत पुरानी है। ओझा जी ने परिश्रम के साथ प्राकृत, अपभ्रंश आदि पूर्ववर्ती और बंगला, गुजराती आदि पार्श्ववर्ती साहित्य में पाए जाने वाले संकेतों के आधार पर प्राचीन नाटकीय परम्परा के छिन्न सूत्रों को खोज निकालने का प्रयास किया है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी"
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Dasharath Oza (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2018
- Pages: 420 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10:8170284023
- ISBN-13: 9788170284024
DESCRIPTION:
"इतना कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रथम बार इतनी विशाल पृष्ठ भूमि पर रखकर हिंदी के नाटक देखे और जाँचे गए हैं।मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक से हिन्दी नाटकों के अध्ययन को बहुत बल मिलेगा और यह हिंदी-संसार के विद्यार्थियों के द्वारा आदर-सम्मान प्राप्त करेंगी। हिंदी में लोक-नाट्य की परम्परा बहुत पुरानी है। ओझा जी ने परिश्रम के साथ प्राकृत, अपभ्रंश आदि पूर्ववर्ती और बंगला, गुजराती आदि पार्श्ववर्ती साहित्य में पाए जाने वाले संकेतों के आधार पर प्राचीन नाटकीय परम्परा के छिन्न सूत्रों को खोज निकालने का प्रयास किया है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी"
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