SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Ravindra Jain (Author)
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 136 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350642352
- ISBN-13 :9789350642351
DESCRIPTION:
सौदागर, चोर मचाए शोर, दुलहिन वही जो पिया मन भाये, राम तेरी गंगा मैली, हिना जैसी लोकप्रिय फिल्मों के संगीत-निर्देशक रवीन्द्र जैन लोकप्रिय संगीतकार होने के साथ एक बहुत अच्छे गीतकार और गायक भी हैं। अलीगढ़ में जन्मे रवीन्द्र जैन जन्मान्ध हैं लेकिन कभी इसको अपने रास्ते की बाधा नहीं बनने दिया। इलाहाबाद से संगीत प्रभाकर की उपाधि पाकर वे मुंबई आए और हिन्दी फिल्म जगत में अपने संगीत का सिक्का जमाया। फिल्मों के अतिरिक्त टेलीविज़न धारावाहिक रामायण, श्रीकृष्ण, अलिफ-लैला का भी संगीत-निर्देशन किया। उनके कई गैर-फिल्मी एलबम भी हैं। रवीन्द्र जैन जितने अच्छे संगीतकार हैं उतने ही अच्छे गीतकार और शायर भी हैं। उनके बारे में प्रसिद्ध कवि गोपालदास ‘नीरज’ का कहना है: ‘‘श्री रवीन्द्र जैन की गज़लों पर नज़र डालते हैं तो यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि जिसने कभी उर्दू ज़बान पढ़ी ही नहीं, उसने कैसे ऐसी ग़ज़लें और शे’र कहे जो उस्तादों द्वारा कहे जाते हैं।’’ इस पुस्तक में प्रस्तुत उनकी ग़ज़लें, नज्में और शे’र आपको बहुत पसन्द आएंगे।
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Ravindra Jain (Author)
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 136 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350642352
- ISBN-13 :9789350642351
DESCRIPTION:
सौदागर, चोर मचाए शोर, दुलहिन वही जो पिया मन भाये, राम तेरी गंगा मैली, हिना जैसी लोकप्रिय फिल्मों के संगीत-निर्देशक रवीन्द्र जैन लोकप्रिय संगीतकार होने के साथ एक बहुत अच्छे गीतकार और गायक भी हैं। अलीगढ़ में जन्मे रवीन्द्र जैन जन्मान्ध हैं लेकिन कभी इसको अपने रास्ते की बाधा नहीं बनने दिया। इलाहाबाद से संगीत प्रभाकर की उपाधि पाकर वे मुंबई आए और हिन्दी फिल्म जगत में अपने संगीत का सिक्का जमाया। फिल्मों के अतिरिक्त टेलीविज़न धारावाहिक रामायण, श्रीकृष्ण, अलिफ-लैला का भी संगीत-निर्देशन किया। उनके कई गैर-फिल्मी एलबम भी हैं। रवीन्द्र जैन जितने अच्छे संगीतकार हैं उतने ही अच्छे गीतकार और शायर भी हैं। उनके बारे में प्रसिद्ध कवि गोपालदास ‘नीरज’ का कहना है: ‘‘श्री रवीन्द्र जैन की गज़लों पर नज़र डालते हैं तो यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि जिसने कभी उर्दू ज़बान पढ़ी ही नहीं, उसने कैसे ऐसी ग़ज़लें और शे’र कहे जो उस्तादों द्वारा कहे जाते हैं।’’ इस पुस्तक में प्रस्तुत उनकी ग़ज़लें, नज्में और शे’र आपको बहुत पसन्द आएंगे।
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