SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Kailash Banwasi
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10:9386534738
- ISBN-13 :9789386534736
DESCRIPTION:
कैलाश बनवासी को युवा कहानी में अपने सर्वथा अलहदा स्वर के लिए जाना जाता है। युवा कहानी में पीछे छूट गईं हाशियों की आवाज़ों को पहचानने का मुश्किल काम बनवासी की कहानियाँ करती हैं। उन्होंने भारतीय समाज के उस हिस्से के लोगों को अपनी कहानियों में जगह दी है जो गाँवों-कस्बों में रहकर बदलते भारत में अपनी जगह खोज रहे हैं। कामकाजी औरतें, खेतों में जूझते किसान और साधारण नागरिकों के संघर्ष बनवासी की कहानियों का प्रस्थान बिंदु हैं। वे अपनी कहानियों को सहज भाषा और प्रभावशाली प्रस्तुति से बुनते हैं और जिस विचार का संकल्प उनकी कहानियों में दिखाई देता है, वह असल में प्रेमचंद, रेणु और हरिशंकर परसाई का रास्ता है जो कहानी को जनता की चीज़ बनाता है। भूमंडलीकरण के नए परिदृश्य में कैलाश बनवासी की कहानियाँ हमें देश के अनदेखे-अनजाने इलाकों में ले जाने में सफल हैं। 10 मार्च 1965 को दुर्ग (छत्तीसगढ़ ) में जन्मे कैलाश बनवासी हिन्दी के प्रमुख कथाकार हैं। भारत में भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के शुरुआती दिनों में ही आपने बाज़ार में रामधन जैसी कहानी लिखकर हिन्दी पाठकों और आलोचकों का ध्यान आकृष्ट कर लिया था। भारत के ग्रामीण-कस्बाई क्षेत्रों के जीवन का प्रामाणिक चित्रण बनवासी की कहानियों की विशेषता है। लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ, बाज़ार में रामधन, पीले कागज़ की उजली इबारत तथा प्रकोप आपके चार कहानी संग्रह हैं। एक उपन्यास लौटना नहीं है भी प्रकाशित हो चुका है। आपको श्याम व्यास पुरस्कार (1997) तथा प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान (2010) से समादृत किया गया है।
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Kailash Banwasi
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10:9386534738
- ISBN-13 :9789386534736
DESCRIPTION:
कैलाश बनवासी को युवा कहानी में अपने सर्वथा अलहदा स्वर के लिए जाना जाता है। युवा कहानी में पीछे छूट गईं हाशियों की आवाज़ों को पहचानने का मुश्किल काम बनवासी की कहानियाँ करती हैं। उन्होंने भारतीय समाज के उस हिस्से के लोगों को अपनी कहानियों में जगह दी है जो गाँवों-कस्बों में रहकर बदलते भारत में अपनी जगह खोज रहे हैं। कामकाजी औरतें, खेतों में जूझते किसान और साधारण नागरिकों के संघर्ष बनवासी की कहानियों का प्रस्थान बिंदु हैं। वे अपनी कहानियों को सहज भाषा और प्रभावशाली प्रस्तुति से बुनते हैं और जिस विचार का संकल्प उनकी कहानियों में दिखाई देता है, वह असल में प्रेमचंद, रेणु और हरिशंकर परसाई का रास्ता है जो कहानी को जनता की चीज़ बनाता है। भूमंडलीकरण के नए परिदृश्य में कैलाश बनवासी की कहानियाँ हमें देश के अनदेखे-अनजाने इलाकों में ले जाने में सफल हैं। 10 मार्च 1965 को दुर्ग (छत्तीसगढ़ ) में जन्मे कैलाश बनवासी हिन्दी के प्रमुख कथाकार हैं। भारत में भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के शुरुआती दिनों में ही आपने बाज़ार में रामधन जैसी कहानी लिखकर हिन्दी पाठकों और आलोचकों का ध्यान आकृष्ट कर लिया था। भारत के ग्रामीण-कस्बाई क्षेत्रों के जीवन का प्रामाणिक चित्रण बनवासी की कहानियों की विशेषता है। लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ, बाज़ार में रामधन, पीले कागज़ की उजली इबारत तथा प्रकोप आपके चार कहानी संग्रह हैं। एक उपन्यास लौटना नहीं है भी प्रकाशित हो चुका है। आपको श्याम व्यास पुरस्कार (1997) तथा प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान (2010) से समादृत किया गया है।
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