SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Tufail Chaturvedi (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 192 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534959
- ISBN-13 :9789386534958
DESCRIPTION:
एक साथ पहली बार एक किताब में एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर की ग़ज़लें इस किताब में जो एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर एक साथ शामिल किए गए हैं उनकी ख़ासियत है कि वो अपनी ग़ज़लों में बिलकुल अलग क़िस्म और अनछुए मुद्दों को उठाते हैं। पाकिस्तान के शायर अज़हर फ़राग़ की शायरी की विशेषता उनके ताज़ा और अछूते विषय हैं। वे अपनी ग़ज़लों में कभी ख़्वाब देखते हैं, कभी ख़्वाबों को जीते हैं तो कभी ख़्वाबों से निकलकर हक़ीक़त का सामना करते हुए चराग़ लेकर हवा से मुक़ाबला करने निकल पड़ते हैं। वो अपने अन्दर और बाहर दोनों जगह बराबर नज़र जमाये हुए रहते हैं और ख़ुदकलामी नहीं वक़्त से रू-ब-रू होकर कलाम करते हैं। लेकिन कहीं भी ग़ज़ल की रूह को वो ठेस नहीं पहुँचाते और अपनी बात सलीक़े से कहने में कामयाब हो जाते हैं। हिन्दुस्तान के शायर, अहमद कमाल परवाज़ी, की शायरी जैसे ज़िन्दगी की मुश्किलों से होड़ लेती हुई, तीखे तन्ज़ कसती हुई सबको होशियार, ख़बरदार करती हुई आगे बढ़ती है। परवाज़ी रवायतों को तोड़ते और अपनी ग़ज़ल में ऐसे-ऐसे विषय पिरोते हैं जो शायद पहली बार उर्दू ग़ज़ल का हिस्सा बने हैं जैसे - रबी और खरीफ़ की फ़सल, बच्चों के स्कूल की फ़ीस, सियासत के दाँव-पेच, गाँव की ज़िन्दगी... और इन सब पर ग़ज़ल में गहरा चिंतन। इन दोनों शायरों की ग़ज़लें अभी तक उर्दू में ही हैं अब पहली बार इनकी ग़ज़लें देवनागरी में
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Tufail Chaturvedi (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 192 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534959
- ISBN-13 :9789386534958
DESCRIPTION:
एक साथ पहली बार एक किताब में एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर की ग़ज़लें इस किताब में जो एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर एक साथ शामिल किए गए हैं उनकी ख़ासियत है कि वो अपनी ग़ज़लों में बिलकुल अलग क़िस्म और अनछुए मुद्दों को उठाते हैं। पाकिस्तान के शायर अज़हर फ़राग़ की शायरी की विशेषता उनके ताज़ा और अछूते विषय हैं। वे अपनी ग़ज़लों में कभी ख़्वाब देखते हैं, कभी ख़्वाबों को जीते हैं तो कभी ख़्वाबों से निकलकर हक़ीक़त का सामना करते हुए चराग़ लेकर हवा से मुक़ाबला करने निकल पड़ते हैं। वो अपने अन्दर और बाहर दोनों जगह बराबर नज़र जमाये हुए रहते हैं और ख़ुदकलामी नहीं वक़्त से रू-ब-रू होकर कलाम करते हैं। लेकिन कहीं भी ग़ज़ल की रूह को वो ठेस नहीं पहुँचाते और अपनी बात सलीक़े से कहने में कामयाब हो जाते हैं। हिन्दुस्तान के शायर, अहमद कमाल परवाज़ी, की शायरी जैसे ज़िन्दगी की मुश्किलों से होड़ लेती हुई, तीखे तन्ज़ कसती हुई सबको होशियार, ख़बरदार करती हुई आगे बढ़ती है। परवाज़ी रवायतों को तोड़ते और अपनी ग़ज़ल में ऐसे-ऐसे विषय पिरोते हैं जो शायद पहली बार उर्दू ग़ज़ल का हिस्सा बने हैं जैसे - रबी और खरीफ़ की फ़सल, बच्चों के स्कूल की फ़ीस, सियासत के दाँव-पेच, गाँव की ज़िन्दगी... और इन सब पर ग़ज़ल में गहरा चिंतन। इन दोनों शायरों की ग़ज़लें अभी तक उर्दू में ही हैं अब पहली बार इनकी ग़ज़लें देवनागरी में
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