Gandhi Ko Phansi Do

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SPECIFICATION:
  • Publisher : Rajpal and Sons
  • By:  Giriraj Kishore (Author)
  • Binding : Hardcover
  • Language : Hindi
  • Edition :2016
  • Pages: 64 pages
  • Size : 20 x 14 x 4 cm
  • ISBN-10: 8170288061
  • ISBN-13 :9788170288060

DESCRIPTION: 

गाँधी को फाँसी दो!’ ‘गाँधी को फाँसी दो!’ के नारों, सड़े अंडों और पत्थरों से दक्षिणी अफ्रीका की अंग्रेज़ हुकूमत ने गाँधी का ‘स्वागत’ किया, जब वह 1897 में वहाँ वापस लौटे। इस रोष और गुस्से का कारण था गाँधी द्वारा राजकोट में प्रकाशित एक पुस्तिका ‘ग्रीन पेपर’, जिसमें उन्होंने अंग्रेज़ सरकार की रंगभेद-नीति की कड़ी निंदा की थी और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की दयनीय स्थिति के बारे में भारत की जनता को जागरूक किया था। दक्षिण अफ्रीका गाँधी की कर्मभूमि थी जहाँ उन्होंने अपने जीवन के बीस वर्ष बिताए और वहीं पर अहिंसा और सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया। गाँधीजी का कहना था, ‘‘मेरा ‘जन्म’ तो भारत में हुआ, लेकिन मैं ‘तराशा’ गया दक्षिण अफ्रीका में।’’ इसी दक्षिण अफ्रीका की पृष्ठभूमि पर आधारित है यह नाटक। दक्षिण अफ्रीका की अंग्रेज़ सरकार और पड़ोसी अफ्रीकी देशों के बीच लड़ा जा रहा था ‘बोअर युद्ध’, जिसमें गाँधी ने युद्ध में घायल लोगों के इलाज के लिए ‘एम्बुलेंस कोर’ का आयोजन किया था। उस समय गाँधी के मन की क्या स्थिति थी-जहाँ एक तरफ वे अंग्रेज़ सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी सत्याग्रह की लड़ाई लड़ रहे थे और दूसरी ओर उसी सरकार का साथ दे रहे थे-युद्ध में पीड़ितों को राहत देकर इन सब जज़्बातों को बखूबी पेश किया गया है इस नाटक में। इस नाटक के लेखक हैं जाने-माने हिन्दी साहित्यकार गिरिराज किशोर, जो अब तक अनेक उपन्यास और नाटक लिख चुके हैं। अपने इस सातवें नाटक में लेखक ने एक अनोखा प्रयोग किया है-नाटक के दो अंत दिए हैं! पाठक अपनी पसंद के अनुसार नाटक का कोई भी अंत चुन सकता है।

                          Description

                          SPECIFICATION:
                          • Publisher : Rajpal and Sons
                          • By:  Giriraj Kishore (Author)
                          • Binding : Hardcover
                          • Language : Hindi
                          • Edition :2016
                          • Pages: 64 pages
                          • Size : 20 x 14 x 4 cm
                          • ISBN-10: 8170288061
                          • ISBN-13 :9788170288060

                          DESCRIPTION: 

                          गाँधी को फाँसी दो!’ ‘गाँधी को फाँसी दो!’ के नारों, सड़े अंडों और पत्थरों से दक्षिणी अफ्रीका की अंग्रेज़ हुकूमत ने गाँधी का ‘स्वागत’ किया, जब वह 1897 में वहाँ वापस लौटे। इस रोष और गुस्से का कारण था गाँधी द्वारा राजकोट में प्रकाशित एक पुस्तिका ‘ग्रीन पेपर’, जिसमें उन्होंने अंग्रेज़ सरकार की रंगभेद-नीति की कड़ी निंदा की थी और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की दयनीय स्थिति के बारे में भारत की जनता को जागरूक किया था। दक्षिण अफ्रीका गाँधी की कर्मभूमि थी जहाँ उन्होंने अपने जीवन के बीस वर्ष बिताए और वहीं पर अहिंसा और सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया। गाँधीजी का कहना था, ‘‘मेरा ‘जन्म’ तो भारत में हुआ, लेकिन मैं ‘तराशा’ गया दक्षिण अफ्रीका में।’’ इसी दक्षिण अफ्रीका की पृष्ठभूमि पर आधारित है यह नाटक। दक्षिण अफ्रीका की अंग्रेज़ सरकार और पड़ोसी अफ्रीकी देशों के बीच लड़ा जा रहा था ‘बोअर युद्ध’, जिसमें गाँधी ने युद्ध में घायल लोगों के इलाज के लिए ‘एम्बुलेंस कोर’ का आयोजन किया था। उस समय गाँधी के मन की क्या स्थिति थी-जहाँ एक तरफ वे अंग्रेज़ सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी सत्याग्रह की लड़ाई लड़ रहे थे और दूसरी ओर उसी सरकार का साथ दे रहे थे-युद्ध में पीड़ितों को राहत देकर इन सब जज़्बातों को बखूबी पेश किया गया है इस नाटक में। इस नाटक के लेखक हैं जाने-माने हिन्दी साहित्यकार गिरिराज किशोर, जो अब तक अनेक उपन्यास और नाटक लिख चुके हैं। अपने इस सातवें नाटक में लेखक ने एक अनोखा प्रयोग किया है-नाटक के दो अंत दिए हैं! पाठक अपनी पसंद के अनुसार नाटक का कोई भी अंत चुन सकता है।

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