SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Sharat Chandra Chattopadhyaya (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8174831762
- ISBN-13 :9788174831767
DESCRIPTION:
देवदास, पारो और चंद्रमुखी -ये तीनो किरदार प्रेम के ऐसे प्रतीक बन गये है की उनकी गिनती लैला -मजनू , शीरी फरहाद , हीर -राँझा के साथ होने लगी . बीसवी सदी के बंगाल के जमीदार समाज की पृष्टभूमि में स्थित यह एक मार्मिक प्रेमगाथा है . इसमें देवदास को अपने बचपन के साथी पारो से अटूट प्यार है लेकिन यह प्यार परवान नहीं चढ़ता . हताश ,परेशान देवदास जब शराब को अपना सहारा बना लेता है तब उसकी जिन्दगी में आती है चंद्रमुखी . देवदास और चंद्रमुखी का रिश्ता अनोखा है - जिसमे प्यार की अनुभुति के विभिन्न रंग एक साथ झलकते है . उपन्यास के हर पृष्ट पर लेखक की गहरी संवेदना , बारीकी से अपने आसपास के समाज को देखने -परखने की नज़र और इन सबको अपनी कलम से कागज़ पर उतारने की बेजोड़ क्षमता ही कारण है की 1917 में लिखा यह उपन्यास आज भी पाठको के बीच इतना लोकप्रिय है . बंगला लेखक शरतचंद्र चटोपाध्याय के इस लोकप्रिय उपन्यास का अनेक भाषाओं मे अनुवाद हो चुका है और भारत में ही इस पर कई भाषाओं में ही इस पर कई भाषाओं में एक दर्ज़न से अधिक फिल्मे बन चुकी हैं।
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Sharat Chandra Chattopadhyaya (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8174831762
- ISBN-13 :9788174831767
DESCRIPTION:
देवदास, पारो और चंद्रमुखी -ये तीनो किरदार प्रेम के ऐसे प्रतीक बन गये है की उनकी गिनती लैला -मजनू , शीरी फरहाद , हीर -राँझा के साथ होने लगी . बीसवी सदी के बंगाल के जमीदार समाज की पृष्टभूमि में स्थित यह एक मार्मिक प्रेमगाथा है . इसमें देवदास को अपने बचपन के साथी पारो से अटूट प्यार है लेकिन यह प्यार परवान नहीं चढ़ता . हताश ,परेशान देवदास जब शराब को अपना सहारा बना लेता है तब उसकी जिन्दगी में आती है चंद्रमुखी . देवदास और चंद्रमुखी का रिश्ता अनोखा है - जिसमे प्यार की अनुभुति के विभिन्न रंग एक साथ झलकते है . उपन्यास के हर पृष्ट पर लेखक की गहरी संवेदना , बारीकी से अपने आसपास के समाज को देखने -परखने की नज़र और इन सबको अपनी कलम से कागज़ पर उतारने की बेजोड़ क्षमता ही कारण है की 1917 में लिखा यह उपन्यास आज भी पाठको के बीच इतना लोकप्रिय है . बंगला लेखक शरतचंद्र चटोपाध्याय के इस लोकप्रिय उपन्यास का अनेक भाषाओं मे अनुवाद हो चुका है और भारत में ही इस पर कई भाषाओं में ही इस पर कई भाषाओं में एक दर्ज़न से अधिक फिल्मे बन चुकी हैं।
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