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It is said that you unfold a whole new world every time you open a book. Ganges India presents to you the widest and the most distinctive genre of books to satisfy the diverse taste and preferences of all readers. Here you will find books of assorted topics and interest that can not only strengthen your love for books, but also change your life for good. So, readers! Assemble and dive into the greatest collection of knowledge and enrich your awareness and perception. Books have been an indispensable part of mankind and serve as a basis of our lifestyle. The foundations of all aspects of our lives from ideologies, beliefs, education, ethics, culture were laid by the knowledge our ancestors gathered from the prehistoric writings; and it passed on to the subsequent generations through writing itself. So in a way, the content of books can be intense enough to provide a meaningful direction to your life; precisely why we acknowledge the importance of a worthwhile theme and substance in a book. Hence, we bring to you a curated collection of books you would definitely consider keeping close to your heart. We understand your interest in the literary sphere and we have the perfect pick for all categories of book enthusiasts. Enlighten your mind with the various subjects available in Ganges India which includes Hinduism, Buddhism, Astrology, Art & Architecture, History, Philosophy, Performing Arts, Literature, Fiction, Alternative Health, Cooking, Travel, Biographies, General Books, Saints, Indian Languages and of course the junior readers can find their match in the Children’s section. Each category comes with a variety of options for you to choose from based on your personal inclination. One will undisputedly enhance their knowledge, wisdom and experience through these books without having to physically travel around the world or personally undergo any exasperating situations. Additionally, the different genres of books varying from educational, motivational, lifestyle, fiction will not only broaden your understanding towards the way the world works, but also will help you make better decisions for yourself as you would be exposed to a plethora of perspectives. Our Books section is empowered by the loyalty of readers towards books. Each book is provided with all the necessary details to ensure a pleasant buying experience for you. Also, we recommend that you go through the elaborate elucidation provided for most of the products, about the theme and author of the books for better comprehension of the content. Explore this exclusive section of readers’ paradise to immerse yourself in the cognizance of a wide range of subjects. We are certain that there are a gazillion of book-lovers out there; so before these books run out of stock, it is high time that you add them to your precious book collection in order to reinvent your passion and enhance your individual evolution. We are positive that you will be thrilled to read through the promising content of every product in this category
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Bhanwarlal Meena (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534762
- ISBN-13 :9789386534767
DESCRIPTION:
ओमप्रकाश वाल्मीकि भारतीय दलित साहित्य के सबसे बड़े हस्ताक्षर हैं। उनकी आत्मकथा, जूठन, जिसमें उन्होंने जातीय अपमान और उत्पीड़न के कई अनछुए सामाजिक पहलुओं पर रोशनी डाली है, दलित साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। 30 जून 1950 में उत्तर प्रदेश में जन्मे वाल्मीकि ने एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त की जिसके दौरान उन्हें आर्थिक, सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा। 1993 में उन्हें डा. अम्बेडकर पुरस्कार, 1995 में परिवेश सम्मान और साहित्य भूषण पुरस्कार से अलंकृत किया गया। अपनी दलित अस्मिता के आग्रह के बावजूद ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन की व्यापक और गहरी चिंताएँ हैं और इसी कारण, देश, धर्म, जाति और विमर्श पर इस पुस्तक में प्रस्तुत उनके विचार आज भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण और सामयिक हैं। 2012 में जब वे दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में कैंसर का उपचार ले रहे थे तब उनकी देखभाल कर रहे युवा लेखक और दलित साहित्य के शोधार्थी भंवरलाल मीणा ने उनसे लम्बी बातचीत की। इस अंतिम बातचीत में जहाँ अनेक आत्मस्वीकार हैं, वहीं दलित दृष्टि का पुनराविष्कार भी है। यह संवाद इस मायने में अद्वितीय है कि मृत्यु को एकदम नज़दीक से देख रहे लेखक ने जीवन में अपने अनुभवों का अंतिम सार प्रस्तुत कर दिया है। 2013 को ओमप्रकाश वाल्मीकि का देहान्त हो गया। राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में अध्यापन कर रहे भंवरलाल मीणा साहित्य और विमर्श के अध्येता हैं। आदिवासी लोकगीतों पर आपकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है और लघु पत्रिका बनास जन से भी जुड़े हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Shailesh Matiyani (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2000
- Pages: 136 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170283760
- ISBN-13 :9788170283768
DESCRIPTION:
प्रख्यात साहित्यकार शैलेश मटियानी की स्वयं अपने जीवन पर आधारित एक मार्मिक औपन्यासिक रचना - आदि से अंत तक पाठक को बाँधे रखने में समर्थ
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2018
- Pages: 152 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641763
- ISBN-13 :9789350641767
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2013
- Pages: 152 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641534
- ISBN-13 :9789350641538
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350643812
- ISBN-13 :9789350643815
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2017
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350643804
- ISBN-13 :9789350643808
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2017
- Pages: 200 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534088
- ISBN-13 :9789386534088
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350643839
- ISBN-13 :9789350643839
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350643820
- ISBN-13 :9789350643822
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534924
- ISBN-13 :9789386534927
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Saadat Hasan Manto (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2017
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534290
- ISBN-13 :9789386534293
DESCRIPTION:
अगर आपको मेरी कहानियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं... अक्सर ऐसा कहते थे मंटो जब उन पर अश्लीलता के इल्ज़ाम लगते। बेबाक सच लिखने वाले मंटो बहुत से ऐसे मुद्दों पर भी लिखते जिन्हें उस समय के समाज में बंद दरवाज़ों के पीछे दबा कर, छुपा कर रखा जाता था। सच सामने लाने के साथ, कहानी कहने की अपनी बेमिसाल अदा और उर्दू ज़बान पर बेजोड़ पकड़ ने सआदत हसन मंटो को कहानी का बेताज बादशाह बना दिया। मात्र 43 सालों की ज़िंदगी में उन्होंने 200 से अधिक कहानियाँ, एक उपन्यास, तीन निबन्ध-संग्रह और अनेक नाटक, रेडियो और फ़िल्म पटकथाएँ लिखीं। फ्रेंच और रूसी लेखकों से प्रभावित, वामपंथी सोच वाले मंटो के लेखन में सच्चाई को ऐसे पेश करने की ताकत है जो लंबे अर्से तक पाठक के दिलोदिमाग पर अपनी पकड़ बनाए रखती है। 2012 में पूरे हिन्दुस्तान में मनाई गई मंटो की जन्म-शताब्दी इस बात का सबूत है कि मंटो आज भी अपने पाठकों और प्रशंसकों के लिए ज़िंदा हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Josh Malihabadi (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534673
- ISBN-13 :9789386534675
DESCRIPTION:
साफ़ और सीधी बात कहने वाले, जोश मलीहाबादी ने अपनी आत्मकथा उतनी ही साफ़गोई से बयां की है जितने वे खुद थे। 1898 में अविभाजित भारत में मलीहाबाद के यूनाइटिड प्राविन्स में एक साहित्यिक परिवार में उनका जन्म हुआ और नाम रखा गया, शब्बीर हसन खान। जब उन्होंने शायरी करनी शुरू की तो अपना नाम जोश मलीहाबादी रख लिया। जोशीले तो वे थे ही और सोच भी शुरू से ही सत्ता-विरोधी थी। ‘हुस्न और इंकलाब’ नज़्म के बाद उन्हें ‘शायर-ए-इंकलाब’ कहा जाने लगा। 1925 में उस्मानिया विश्वविद्यालय में जब वे काम करते थे, तो उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ़ एक नज़्म कही जिसके चलते उन्हें हैदराबाद छोड़ना पड़ा और उन्होंने कलीम नामक पत्रिका शुरू की जिसमें अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लिखते थे। विभाजन के बाद जोश कुछ समय तक भारत में रहे। 1954 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। लेकिन उर्दू ज़बान के कट्टर समर्थक जोश मलीहाबादी ने महसूस किया कि भारत में उर्दू ज़बान का पहले जैसा दर्जा नहीं रहेगा और इसलिए 1958 में वे पाकिस्तान जा बसे और आखिर तक वहीं रहे। 1982 में 83 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। जोश मलीहाबादी की ज़िन्दगी जितनी विवादग्रस्त थी, उतनी ही उनकी यह आत्मकथा चर्चित रही। आज भी जोश मलीहाबादी का नाम ऊँचे दर्जे के शायरों में शुमार है और उनकी नज़्में और शे’र बहुत लोकप्रिय हैं। यही कारण है कि उनकी आत्मकथा को आज भी पाठक पढ़ना चाहते हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Acharya Mahaprajna (Author)
- Binding :Paperback
- Language : English
- Edition :2014
- Pages: 204 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 81702887210
- ISBN-13 :9788170288725
DESCRIPTION:
Every sunrise brings with it the gift of twenty-four hours to use as we please. How we use each of these hours determines how we end up living our life. To help live a life of joy and fulfillment, this priceless book brings the gift of one thought for every day of the year. Written by Acharya Mahaprajna, an erudite scholar, thinker and writer, these 365 thoughts are the essence of his accumulated knowledge and wisdom which offers to the common man the path of practical, righteous living. Acharya Mahaprajna is the tenth spiritual head of Jain Swetambar Terapanth community. He started writing at the age of twenty-two and by now has written more than two hundred books in Hindi, Sanskrit, Prakrit and Rajasthani languages on meditation, spirituality, and various dimensions of the human mind and behaviour.
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Acharya Mahaprajna (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2010
- Pages: 204 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170288738
- ISBN-13 :9788170288732
DESCRIPTION:
हर सुबह हमारे लिए एक खूबसूरत तोहफ़ा लाती है। दिन के उन चबीस घंटों का तोहफ़ा, जिन्हें हम जैसे चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं। इनमें से हर घंटे को हम कैसे खर्च करते हैं, यही तय करता है कि हम जीवन में क्या पाएंगे और क्या नहीं। हम एक खुशहाल और इत्मीनान भरा जीवन जी सकें, इसलिए इस किताब में साल के हर दिन के लिए एक खूबसूरत विचार दिया गया है। विद्वान् लेखक और विचारक आचार्य महाप्रज्ञ के लिखे ये 365 विचार उनके ज्ञान का सार हैं और संतुलित एवं मर्यादित जीवन की राह दिखाते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ समाज के दसवें आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने बाईस साल की उम्र में लिखना शुरू किया था और अब तक वे ध्यान और अध्यात्म सहित मानव मस्तिष्क और मानव व्यवहार के विभिन्न पहलुओं पर दो सौ से भी ज़्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं। ये किताबें हिंदी, संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी में हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Acharya Mahaprajna (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : English
- Edition :2016
- Pages: 144 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 93506417810
- ISBN-13 :9789350641781
DESCRIPTION:
If the story of life were to be told, a wide range of emotions such as joy, sorrow, anger, envy, love would come into play. This volume presents a collection of stories told by Acharya Mahaprajna which explores different facets of myriad human emotions. Drawing on some universal traits in human behaviour they help us understand our own emotions and channelize them towards better ends; how the right perspective can turn a difficult situation into an opportunity. His Holiness Acharya Mahaprajna (15 June1920 - 9 May 2010) was a philosopher and spiritual guru of the Jain Swetambar Terapanth community. Initiated at the age of ten, Acharya Mahaprajna learned the practice of non-violence and restraint. In order to develop equanimity which, he said, is the precursor to the practice of non-violence, he developed a system of meditation called Preksha Dhyan: to look within and calm oneself to a state of peace and feeling of amity towards one and all. He led the Anuvrat movement initiated by his guru to build moral values in each individual and society as a whole and walked the entire length and breadth of India with this message. A scholar and writer proficient in Sanskrit, Prakrit, Hindi and Rajasthani, Acharya Mahaprajna wrote more than 200 books in all genres of writing; prose, poetry, fiction and philosophy.
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Mary Lutyens (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2013
- Pages: 292 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350640708
- ISBN-13 :9789350640708
DESCRIPTION:
1986 में 90 वर्ष की आयु में कृष्णमूर्ति की मृत्यु हुई, मेरी लट्यंस द्वारा लिखित उनकी वृहदाकार जीवनी के दो खंड ‘द यिअर्ज़ ऑव अवेकनिंग’ (1975) तथा ‘द यिअर्ज़ ऑव फुलफिलमेंट’ (1983) प्रकाशित हो चुके थे। तीसरा खंड ‘दि ओपन डोर’ 1988 में प्रकाशित हुआ। इन तीनों खंडों को मेरी लट्यंस ने ‘द लाइफ एंड डेथ ऑव जे. कृष्णमूर्ति’ नाम से एक ही पुस्तक में समेटा है। मेरी लट्यंस ही के शब्दों में ‘‘मुझे वह वक्त याद नहीं है, जब मैं कृष्णमूर्ति को नहीं जानती थी।’’ थियो साफी द्वारा उद्घोषित नये मसीहा के रूप में जब युवा कृष्णमूर्ति का पहली बार इंग्लैंड आना हुआ था, तब से उनके अंतिम वर्षों तक के जीवन को मेरी लट्यंस ने एक मित्र के तौर पर देखा है और उनकी समग्र जीवन-यात्रा समझने का जतन किया है। ‘कृष्णमूर्ति कौन या क्या थे?’ इस प्रश्न के उत्तर का अन्वेषण उनके जीवन और उनकी मृत्यु के संदर्भ में इन पृष्ठों में किया गया है। कृष्णमूर्ति के अनुसार, उन्होंने जो कुछ कहा है, वह सभी के लिए समान रूप से प्रासंगिक है। हम स्वयं सत्य को खोज सकें, इसमें आने वाली हर बाधा से हमें मुक्त करना ही उनका उद्देश्य है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं और उनके जीवन में कहीं कोई फर्क नहीं है-अतएव उनका जीवन भी उनकी शिक्षा ही है; जीवन, जिसकी व्यापकता में मृत्यु भी समाविष्ट है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं को समझने के लिए उनके जीवन की, उनकी मृत्यु की विशदता को जानना-समझना महत्त्वपूर्ण है। एक निवैयक्तिक व्यक्तित्व की अद्भुत गाथा.
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Mary Lutyens (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2018
- Pages: 292 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641585
- ISBN-13 :9789350641583
DESCRIPTION:
1986 में 90 वर्ष की आयु में कृष्णमूर्ति की मृत्यु हुई, मेरी लट्यंस द्वारा लिखित उनकी वृहदाकार जीवनी के दो खंड ‘द यिअर्ज़ ऑव अवेकनिंग’ (1975) तथा ‘द यिअर्ज़ ऑव फुलफिलमेंट’ (1983) प्रकाशित हो चुके थे। तीसरा खंड ‘दि ओपन डोर’ 1988 में प्रकाशित हुआ। इन तीनों खंडों को मेरी लट्यंस ने ‘द लाइफ एंड डेथ ऑव जे. कृष्णमूर्ति’ नाम से एक ही पुस्तक में समेटा है। मेरी लट्यंस ही के शब्दों में ‘‘मुझे वह वक्त याद नहीं है, जब मैं कृष्णमूर्ति को नहीं जानती थी।’’ थियो साफी द्वारा उद्घोषित नये मसीहा के रूप में जब युवा कृष्णमूर्ति का पहली बार इंग्लैंड आना हुआ था, तब से उनके अंतिम वर्षों तक के जीवन को मेरी लट्यंस ने एक मित्र के तौर पर देखा है और उनकी समग्र जीवन-यात्रा समझने का जतन किया है। ‘कृष्णमूर्ति कौन या क्या थे?’ इस प्रश्न के उत्तर का अन्वेषण उनके जीवन और उनकी मृत्यु के संदर्भ में इन पृष्ठों में किया गया है। कृष्णमूर्ति के अनुसार, उन्होंने जो कुछ कहा है, वह सभी के लिए समान रूप से प्रासंगिक है। हम स्वयं सत्य को खोज सकें, इसमें आने वाली हर बाधा से हमें मुक्त करना ही उनका उद्देश्य है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं और उनके जीवन में कहीं कोई फर्क नहीं है-अतएव उनका जीवन भी उनकी शिक्षा ही है; जीवन, जिसकी व्यापकता में मृत्यु भी समाविष्ट है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं को समझने के लिए उनके जीवन की, उनकी मृत्यु की विशदता को जानना-समझना महत्त्वपूर्ण है। एक निवैयक्तिक व्यक्तित्व की अद्भुत गाथा.
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Sahir Ludhianavi (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 128 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534665
- ISBN-13 :9789386534668
DESCRIPTION:
तल्ख़ियां साहिर लुधियानवी की सबसे पहली किताब थी और इसमें 67 गीत और ग़ज़लें हैं। कॉलेज के दिनों से ही साहिर ने शायरी शुरू कर दी थी और लोग इसे पसन्द भी करने लगे थे, लेकिन उनकी अलग पहचान तल्ख़ियां के प्रकाशन से ही बनने लगी। उर्दू में लिखी यह किताब बहुत लोकप्रिय हुई और इसके कई संस्करण छपे। 1958 में इसका हिन्दी रूपान्तर राजपाल एण्ड सन्ज़ से प्रकाशित हुआ। साहिर के चाहने वाले पाठकों की माँग पर अब इसका नया संस्करण प्रस्तुत है। साहिर लुधियानवी को उनकी शायरी के लिए तो याद किया ही जाएगा लेकिन साथ ही उन्हें हिन्दी सिनेमा में गीतों को एक नई पहचान और मुकाम देने के लिए भी हमेशा याद रखा जायेगा। लुधियाना के एक मुस्लिम परिवार में जन्मे साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी था। कॉलेज की शिक्षा के बाद वे लुधियाना से लाहौर चले गए और उर्दू पत्रिकाओं में काम करने लगे। जब एक विवादग्रस्त बयान के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनकी ग़िरफ़्तारी के वारन्ट निकाले तो 1949 में लाहौर छोड़ कर साहिर भारत आ गये और मुंबई में अपना ठिकाना बनाया। हिन्दी सिनेमा की दुनिया के वे बेहद लोकप्रिय गीतकार साबित हुए और दो बार उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड से नवाज़ा गया। उनके फ़न की क़दर करते हुए भारत सरकार ने 1971 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। 1980 में 59 साल की उम्र में साहिर लुधियानवी की मृत्यु हो गई।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Jack London(Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 80 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8174830359
- ISBN-13 :9788174830357
DESCRIPTION:
जैक लंडन के प्रसिद्ध उपन्यास 'कॉल ऑफ द वाइल्ड ' का सरल हिंदी रूपांतर इस पुस्तक में देखा जा सकता है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Juggernaut
- By: Sunny Leone(Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 212 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 81932841610
- ISBN-13 :9788193284162
DESCRIPTION:
‘इन कहानियों को लिखते हुए मुझे बहुत मज़ा आया-उम्मीद है आप भी इन्हें एन्जॉय करेंगे’-सनी। ‘मर्द कसे हुए पेट, मजबूत हाथों और बेधती हुई आंखों वाले हैं...औरतें सेक्सी, कामुक और कभी-कभी लीक से हटकर सेक्सुअल मुलाकातों की शुरुआत करने वाली हैं’-टाइम्स ऑफ इंडिया। सनी लियोनी भारत की सबसे ज़्यादा चाही जाने वाली और ग्लैमरस महिला हैं। जोश और दिल्लगी से भरी उनकी दिलकश कहानियां आपकी ज़िन्दगी को फिर से जादू से भर देंगी। ‘मादक चाहतों और कई बार जोश में पगे रोमांस की तलाश करती हुई कहानियों का एक चुनिंदा संग्रह’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Dalai Lama(Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2017
- Pages: 272 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 81702886910
- ISBN-13 :9788170288695
DESCRIPTION:
यह आत्मकथा है शान्ति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित परम पावन दलाई लामा की, जिनकी प्रतिष्ठा सारे संसार में है और जिन्हें तिब्बतवासी भगवान के समान पूजते हैं। चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य स्थापित किए जाने के बाद 1959 में उन्हें तिब्बत से निष्कासित कर दिया और वे पिछले 51 वर्षों से भारत में निर्वासित के रूप में अपना जीवन ही रहे हैं। 1938 में जब वे केवल दो वर्ष के थे तब उन्हें दलाई लामा के रूप में पहचाना गया। उन्हें घर और माता-पिता से दूर ल्हासा के एक मठ में ले जाया गया जहाँ कठोर अनुशासन और अकेलेपन में उनकी परवरिश हुई। सात वर्ष की छोटी उम्र में उन्हें तिब्बत का सबसे बड़ा धार्मिक नेता घोषित किया गया और जब वे पंद्रह वर्ष के थे उन्हें तिब्बत का सर्वोच्च राजनीतिक पद दिया गया। एक प्रखर चिंतक, विचारक और आज के वैज्ञानिक युग में सत्य और न्याय का पक्ष लेने वाले धर्मगुरु की तरह दलाई लामा को देश-विदेश में सम्मान मिलता है। यह आत्मकथा है देश निकाला पाने वाले एक निर्वासित शांतिमय योद्धा के संघर्ष की जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर उनके गंभीर चिंतन की झलक मिलती है और जीवन के लिए प्रेरणाप्रद विचार भी।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Dalai Lama(Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2010
- Pages: 272 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170288673
- ISBN-13 :9788170288671
DESCRIPTION:
यह आत्मकथा है शान्ति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित परम पावन दलाई लामा की, जिनकी प्रतिष्ठा सारे संसार में है और जिन्हें तिब्बतवासी भगवान के समान पूजते हैं। चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य स्थापित किए जाने के बाद 1959 में उन्हें तिब्बत से निष्कासित कर दिया और वे पिछले 51 वर्षों से भारत में निर्वासित के रूप में अपना जीवन ही रहे हैं। 1938 में जब वे केवल दो वर्ष के थे तब उन्हें दलाई लामा के रूप में पहचाना गया। उन्हें घर और माता-पिता से दूर ल्हासा के एक मठ में ले जाया गया जहाँ कठोर अनुशासन और अकेलेपन में उनकी परवरिश हुई। सात वर्ष की छोटी उम्र में उन्हें तिब्बत का सबसे बड़ा धार्मिक नेता घोषित किया गया और जब वे पंद्रह वर्ष के थे उन्हें तिब्बत का सर्वोच्च राजनीतिक पद दिया गया। एक प्रखर चिंतक, विचारक और आज के वैज्ञानिक युग में सत्य और न्याय का पक्ष लेने वाले धर्मगुरु की तरह दलाई लामा को देश-विदेश में सम्मान मिलता है। यह आत्मकथा है देश निकाला पाने वाले एक निर्वासित शांतिमय योद्धा के संघर्ष की जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर उनके गंभीर चिंतन की झलक मिलती है और जीवन के लिए प्रेरणाप्रद विचार भी।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Chaman Lal (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2014
- Pages: 224 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287510
- ISBN-13 :9788170287513
DESCRIPTION:
दलित समाज की पीड़ा सबसे पहले पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी में भक्तिकाल के सन्तों की रचनाओं में मुखरित हुई और उन्होंने निर्भीकता से समाज में फैली इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की। उस समय के घोर रूढ़िवादी समाज में यह एक बहुत बड़ा साहस और जोखिम से भरा कदम था। उन्नीसवीं सदी में दलित चेतना के स्वर पहले महाराष्ट्र में उठे और फिर बहुत से साहित्यकारों ने दलितों की समस्या से सम्बन्धित उत्कृष्ट रचनाएँ लिखीं जिनसे देश में नई सामाजिक चेतना जागृत हुई। ‘विषैली रोटी’, ‘मैं भंगी हूँ’, ‘अपने-अपने पिंजरे’, ‘जूठन’ आदि पुस्तकों ने दलित समाज की शोचनीय स्थिति की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया है। प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज की पृष्ठभूमि में लिखे हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य का, दलित महिला लेखन का गहन अध्ययन किया गया है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Sudhir Kumar (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2009
- Pages: 192 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 98170287871
- ISBN-13 :9788170287872
DESCRIPTION:
ज़ोरदार कथानक, कहानी कहने की अपनी अनोखी शैली, सशक्त और सजीव चित्रांकन कि कहानी पढ़ते हुए पाठक उसी परिवेश में सराबोर हो जाता है जिस कारण हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने इसे सराहा है। युवा लेखक प्रवीण कुमार की इन चार लम्बी कहानियों में छोटे-बड़े शहरों और कस्बों की ज़िन्दगी का हर पहलू, वहाँ की बोली, पहनावे, सबको बहुत बारीकी से उकेरा है और इतना रोचक बना दिया है कि छबीला रंगबाज़ एक यादगार किरदार बन जाता है। रुझान से इतिहास, अवधारणा और साहित्य के शोधार्थी प्रवीण कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में हिन्दी के सहायक प्रोफ़ेसर हैं। ddविभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इनके लेखों और कहानियों ने इन्हें एक उभरते हुए कहानीकार की पहचान दी है।
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